The Joke, 1969 में आई एक महत्वपूर्ण चेकस्लोवाकियन फ़िल्म है जो ‘चेक न्यू वेव’ सिनेमा आंदोलन की आखरी फिल्मों में से एक है। यह फ़िल्म चेक सिने इतहास में एक मील का पत्थर है जो अपनी सिनेमेटोग्राफी और सम्पादन की कला के कारण विश्व की सर्वोत्तम फिल्मों में शामिल है। फ़िल्म,स्टालिन के दौर में साम्यवाद ( कम्युनिज्म) में मौजूद दोगलेपन और खोखली व्यस्था के तत्वों को बड़ी ही सूझता से परदे पर उतारती है।
फ़िल्म ‘मिलान कुंदेरा’ के नावेल पर आधारित है और फ़िल्म के निर्दर्शक हैं ‘जेरोमिल जिरेस’ ।
यह फ़िल्म 1968 में बनी जो के स्लोवाकिया में creative freedom का आखरी साल था। उसके बाद वहां मिल्ट्री राज लग हो गया और यह फ़िल्म लगभग बीस सालों तक सिनेमा हॉल का मुंह नहीं देख पायी।
‘लूडवीक’ नामी अधेड़ उम्र का अविवाहित व्यक्ति अपने छोटे से नगर लौटता है जहां वो communist revolution के समय के दौरान, हड़तालों और क्रान्ति के नारों की आवाज़ों के बीच पला बढ़ा।
उस नगर पहुँचने पर उसे 15 साल पहले का वाकय याद आता है जब उसे कम्युनिस्ट पार्टी से क्रान्ति के विरोध में चिठ्ठी लिखने की सज़ा में पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया था। दरअसल वो चिठ्ठी एक प्रेम पत्र था जो लूडवीक ने एक लड़की के लिए लिखा था, जो के उसी पार्टी की कार्यकर्त्ता थी ।
वो उस लड़की से सेक्स करना चाहता था। लेकिन लड़की काम से ज्यादा राजनीती से प्रेम करती थी।
फ़िल्म के निर्देशक जेरिस उन घटनाओं को दिखाने के इरादे से फ़िल्म बनाते हैं जो स्टालिन के आर्डर ना मानने वालों पर तषदद को दर्शाते हैं। “The joke” बिकुल सीधे प्रत्याग और उपहास की कहानी है जो आम नागरिकों को धक्के से जेल में डालने की गाथाओं से भरी है।
15 साल बाद (मौजूदा समय) लूडवीक की अचानक मुलाकात उसे सज़ा सुनाने वाले आदमी की बीवी से होती है। अब पाला इसकी तरफ है। यह उस से इश्क़ लड़ाता है।
The Joke ऐसे कई व्यंग्यों से भरी पड़ी है, आज़ादी के गाने की ऑडियो चलती है, मज़दूर के विसुअल्स के साथ चलते हैं। ऑडियो में समर्थ, ख़ुशी और आज़ादी की ध्वनियाँ सुनाई दे रही हैं, चित्रों में लेबर कैंप और फ़ौज की जेलों के बिम्ब चल रहे हैं।
कुल मिला के यही हालात जैसी अब भारत की है। जो हिंदुस्तान की मौजूद स्थिति है वो भी किसी व्यंग्य से कम नहीं है। टॉलरेंस, इनटॉलेरेंस, देशभक्त इत्यादि।
फ़िल्म में इंटेरकट्टिंग तकनीक से इस्तेमाल हुए दृश्य कमाल के हैं जो फ़िल्म को बांधे रखते हैं।
चेक सरकार कैसे अपने ही नागरिकों का शोषण करती रही यह बेहतरीन है।
लूडवीक का अपने पुराने उमदराज हो चुके दोस्त से मिलना, जो 20 साल की लड़की से प्रेम सम्बद्ध रखे हुए है, The Joke, चाहत और सच्चाई पर तगड़ा व्यंग्य है। फ़िल्म लौकिक दृष्टि से बुनी गयी है जहां समय को एक विस्तार दिया गया है।
कम्युनिज्म और मिल्ट्री राज के साथ साथ फ़िल्म एक अस्तित्ववादी परिभाषा भी गढ़ती जाती है जैसे बदला ना ले सकने की हालात में इंसान का समय को भोगना, बिना समझे कुछ भी नहीं मानने का जोखिम और सच्चाई का पक्ष लेते लेते लोगों से दूर होने की पीड़ा।
इस फ़िल्म में बहुत कुछ है जो मानवी संवेदना और दर्द की कहानी कहता है जो विश्व के किसी भी आदमी के साथ घटित हो सकती है। यही बात इस फ़िल्म को सरब व्यापी बनाती है ।
फ़िल्म के निर्दर्शक जेरोमिल जिरेस व्यंग और अनुभूति वाला सिनेमा रचने में माहिर हैं।
फ़िल्म की लिखाई कमाल की है। जैसे एक सीन में कहा हैे के “आज को भरपूर जीने के लिए इतहास के जख्मों को याद रखना चाहिये ” या फिर “जीवन में की गयी चलाकियां कई बार घूम कर खुद पर ही आ पड़तीं हैं।”
1965 से 1968 के साल चेक सिनेमा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रहे । जहां इस दौरान जबरदस्त सिनेमा बना वहीँ पर चक न्यू वेव भी लेहर भी दौड़ी। “वेरा चयतिलोव” की ‘daisies’ इस दौर की महत्वपूर्ण फ़िल्म है। इस के साथ साथ “जिरी मेंजेल” की ‘capricious summer’ भी देखने लायक है।
जाते जाते फ़िल्म का एक डायलाग जो आज के समय पर पूरा फिट बैठता है –
“We lived in a prison with brass bands playing on the balconies.”
– Gursimran Datla