इंगमार बर्गमैन के आज 97वें जन्मदिन पर उस फनकार को कोटि कोटि सलाम, जिसने सिनेमा की कला को अपनी फिल्मों से कई सदियों के लिए जीवित कर दिया। उसकी फिल्मों का विश्व सिनेमा में इतना योगदान है के उसको फिल्मों को हटा लो तोह यह कला दो आयामी (two dimentional) लगने लगती है। 40 से भी ज़्यादा फ़िल्में बनाने वाले इस स्वीडिश फिल्मकार ने 3 ऑस्कर अपने नाम किये हैं और उनकी फिल्में मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों पर गहरी, दर्दनाक चोट करने वाली रहीं।
उन्नीसवीं शताब्दी आधी बीतते-न-बीतते पूरी दुनिया में कला के स्तर पर बहुत सारे प्रयोग हुए । इसके पहले सिनेमा को एक गंभीर कला माध्यम के रूप में पहचान नहीं मिली थी। सिनेमा महज़ एक आश्चर्यचकित करने वाला माध्यम था। और यही वह दौर था, जब फ्राँस में ज्याँ लुक गोदार, इटली में फेलिनी, जापान में कुरोसावा, रूस में आंद्रेई तारकोवस्की, भारत में सत्यजीत रे और स्वीडन में इंगमार बर्गमैन एक नई सिनेमाई भाषा का सृजन कर रहे थे। इन लोगों ने सिनेमा को उस मुकाम तक पहुंचाया, जहां सिनेमा और जीवन समान्तर लगने लगे। सिनेमा की भाषा इतनी जटिल और गंभीर भी हो सकती है, और पर्दे पर मनुष्य जीवन के बिम्बों को इस तरह रचा जा सकता है, ऐसा पहले कभी महसूस नहीं हुआ था।
बर्गमैन के पिता एक पादरी थे। घर में सख्ती थी, अनुशासन था, लेकिन बर्गमैन तोह आजाद थे। और धर्म-विरोधी भी होते गए। उनकी कई फिल्मों में एक तानाशाह पिता और सख्त परिवार के बिम्ब मिलते हैं, जो काफी हद तक उनके अपने जीवन के ही बिम्ब हैं। सिनेमा बहुत ही व्यक्तिगत कला है और इस माध्यम में गढ़ा झूठ फिल्म को महानता की और नहीं लेकर जा सकता। सिनेमा सच्चाई से बनता है और यह ज़िंदा भी सच्चाई के कारण ही रहता है।
“मेरी फ़िल्मों के लोग बिल्कुल मेरे जैसे ही होते हैं, सहजबुद्धि वाले, अपेक्षाकृत कम बौद्धिक क्षमता वाले लोग, जो अगर सोचते भी हैं तो तभी जब वे बात कर रहे होते हैं.”- इंगमार बर्गमैन
15 best films of Ingmar Bergman
बर्गमॅन के निधन के बाद उनकी उदासी भरी फिल्मों को देखना एक असाधारण अनुभव है। क्यूंकि जीवन सिर्फ हस्ते हुए गुजरने का नाम नहीं है, यह सवालों से भरा भी है , अंदाज़ों से भरा भी। बर्गमैन बहुत सारे जवाब दे देता है। उसकी फिल्मों के किरदार आप के आंतरिक मन से बातें करते हैं।
अपने जीवन में बर्गमैन ने 5 विवाह रचाये जिनसे 9 औलादें हुयी। उनकी फिल्मों में भी पति-पत्नी के रिश्तों की परतें नज़र आती हैं, हो सकता है के कोई बर्गमैन को समझ ना पायी हो। बर्गमैन के साथ ”लिव उल्लमन” का भी ज़िक्र बनता है जिसे उनके रिश्ते लम्बे समय तक रहे। बर्गमैन अपनी फिल्में खुद लिखते थे और सालों तक उनके बारे में सोचते रहते थे। बर्गमैन की फिल्मों का विषय भी मृत्यु दर, अकेलापन, और धार्मिक आस्था के आस पास रहा।
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा के ” मेरी फिल्मों में सेक्स की अभिव्यक्ति मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और विशेष रूप से यह सब से ऊपर है, मैं केवल बौद्धिक फिल्में ही नहीं बनाना चाहता। मैं दर्शकों को अपनी फिल्मों की भावना महसूस करवाना चाहता हूँ। मेरे लिए यह ज्यादा महत्वपूर्ण है इस के मुकाबले के वो फिल्म को समझे हैं के नहीं।
My last post on Bergman’s film ”The Passion Of Anna”
आखिर में मेरी तरफ से सिनेमा के इस महा कवि को मेरा नमन और यही कहूँगा के बर्गमान की फिल्में चेहरों के क्लोज अप के जरिये ही हमारे के अंतर की दुनिया की खबरें हमारे तक पहुँचातीं हैं। जब हम उनकी फिल्में देखकर निकलते हैं, तोह उनकी फिल्म के क्लोज अप वाले चेहरे हमारा लगातार पीछा करते रहते हैं…
A short must watch video on Bergan’s Dreams
– गुरसिमरन दातला